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Jharkhand Ke Aadiwasiyon Ke Beech

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By Vir Bharat Talwar (Author)

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Product details

  • Publisher ‏ : ‎ Bharatiya Jnanpith; 5th edition (6 June 2024); Bharatiya Jnanpith
  • Language ‏ : ‎ Hindi
  • Hardcover ‏ : ‎ 692 pages
  • ISBN-10 ‏ : ‎ 9357758224
  • ISBN-13 ‏ : ‎ 978-9357758222
  • Reading age ‏ : ‎ 18 years and up
  • Item Weight ‏ : ‎ 850 g
  • Country of Origin ‏ : ‎ India
  • Packer ‏ : ‎ Bharatiya Jnanpith

About the product

“झारखण्ड के आदिवासियों के बीच – डॉ. वीर भारत तलवार का यह लेखन किसी एक विधा विशेष के अन्तर्गत नहीं आता। इसमें बौद्धिक चिन्तन-मनन है तो सरस जीवनी और संस्मरण भी हैं; ख़तो-किताबत है तो रिपोर्टिंग और रिपोर्ताज़ भी हैं; राजनीतिक और भाषिक विवेचन है तो डायरी और साहित्यिक आलोचना भी है। इसका विषय जितना राजनीतिक है उतना ही समाजशास्त्रीय है। इसके अन्तर्गत एन्थ्रोपॉलोजिकल क़िस्म के फ़ील्डवर्क साथ ही राजनीतिक आन्दोलन का इतिहास रेखांकित किया गया है। वास्तव में यह पुस्तक 1970 के दशक में एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के आदिवासी इलाक़ों में गुज़ारे दस वर्षों के जीवन्त अनुभवों का विस्तृत और दुर्लभ दस्तावेज़ है। विद्वान लेखक ने इस कृति में झारखण्ड की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं पर गहरी सूझबूझ एवं अन्तर्दृष्टि के साथ गम्भीर विवेचन किया है। इससे इसमें न केवल झारखण्ड के आदिवासी जीवन और व्यक्तित्व का आन्तरिक परिचय मिलता है, उसकी आत्मा का सौन्दर्य भी झलकता है। आदिवासियों के भयंकर आर्थिक शोषण तथा पीड़ादायक विस्थापन की चिन्ताओं के साथ लेखक ने उनके ग्रामीण जीवन एवं लोक जीवन का सरस स्पर्श भी किया है। सालों-साल आदिवासियों के बीच रहकर लेखक ने जो अनुभव अर्जित किये उससे उस समाज के विभिन्न पक्षों का ठोस प्रामाणिक विवेचन होने के कारण निःसन्देह यह एक अनूठी कृति बन गयी है। “

About to author

Vir Bharat Talwar

डॉ. वीर भारत तलवार

जन्म: 20 सितम्बर, 1947 (जमशेदपुर)।
शिक्षा: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से 1970 में एम.ए. (हिन्दी)। 1984 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पीएच.डी.। 1996 से 1999 तक भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में फ़ेलो। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केन्द्र में प्रोफ़ेसर। फ़िलहाल भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में पुनः फ़ेलो।
1970 का पूरा दशक नक्सलवादी आन्दोलन में पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय। अलग झारखण्ड राज्य आन्दोलन के सिद्धान्तकारों में एक इसी दौर में तीन पत्रिकाओं—पटना से ‘फिलहाल’ (1972 74), धनबाद से ‘शालपत्र’ (1977-78) और राँची से ‘झारखण्ड वार्ता’ (1977-78) का सम्पादन-प्रकाशन कार्य। आदिवासी इलाक़ों, बड़े बाँधों के विकल्प पर शोध तथा राँची विश्वविद्यालय में आदिवासी का विभाग खुलवाने में विशेष भूमिका।
प्रकाशन: किसान, राष्ट्रीय आन्दोलन और प्रेमचन्द : 1918-22 (1990), राष्ट्रीय नवजागरण और साहित्य (1993), हिन्दी नवजागरण की विचारधारा सत्यार्थ प्रकाश (2001), रस्साक़शी (2002), राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द : प्रतिनिधि संकलन (सम्पादित, 2004) राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द (मोनोग्राफ़, 2005), सामना (2005) तथा नक्सलबाड़ी के दौर में (सम्पादित 2007) I
पुरस्कार/सम्मान: झारखण्ड के आदिवासियों द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान ‘भगवान बिरसा पुरस्कार’ (1888-89) तथा ‘झारखण्डरत्न’ की उपाधि (2003) I

Weight 850 g
book

Brand

Vani prakashan

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