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Dushkar

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 by Mahashweta Devi (Author)

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SKU: 978-9352292066 Category:
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Product details

  • Publisher ‏ : ‎ Vani Prakashan; First Edition (1 January 2010)
  • Language ‏ : ‎ Hindi
  • Paperback ‏ : ‎ 120 pages
  • ISBN-10 ‏ : ‎ 9352292065
  • ISBN-13 ‏ : ‎ 978-9352292066
  • Item Weight ‏ : ‎ 150 g
  • Dimensions ‏ : ‎ 20.3 x 25.4 x 4.7 cm
  • Country of Origin ‏ : ‎ India
  • Best Sellers Rank: #480,588 in Books

About the product

‘मेरा विश्वास निर्माण और निर्मित में है, जो मैं आज भी सीख रही हूँ। जो सब उपादान किताबें पढ़कर, जनमानस से परिचित होकर, पैदल-पाँव, घूम-फिरकर जुटाती हूँ, वह मेरे मन के पन्नों में दर्ज हो जाता है। इसमें जादू का अहसास भी शामिल है। असल में प्रत्यक्ष तर्जुर्बों की हमेशा जरूरत नहीं पड़ती। वैसे मेरी क्षमता का दायरा भी छोटा है। मैं उसमें विश्वसनीयता गढ़ने का प्रयास करती हूँ। मेहनत अन्वेषण और नित्यप्रति सीखते रहने का सिलसिला, आज भी खत्म नहीं हुआ। मुझे नहीं लगता कि प्रत्यक्ष अभिज्ञता ही आखिरी बात है। मैं कहीं पहुँचना चाहती हूँ, इसीलिए मैं निरंतर चलती रहती हूँ। अध्ययन, ग्रहण और सतत जागरूक मन के जरिए, मैं कथावस्तु को पकड़ने की कोशिश करती हूँ। ये सब अभिज्ञता मेरे मन में पलती-बढ़ती रहती है। मेरे मन को मथती रहती है। यही मेरी आस्था, मेरा विश्वास है। जिस दिन यह सब ‘ना’ हो जाएगा, मैं भी ‘ना’ हो जाऊँगी।’ उपन्यास का ये अंश लेखिका की रचनाशीलता का प्रमाण है।

About the author

About the Author

महाश्वेता देवी (14 जनवरी 1926 – 28 जुलाई 2016) एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका थीं। उन्हें 1996 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनका जन्म अविभाजित भारत के ढाका में हुआ था। उनके पिता मनीष घटक एक कवि और एक उपन्यासकार थे और उनकी माता धारीत्री देवी भी एक लेखकिका और एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उनकी स्कूली शिक्षा ढाका में हुई। भारत विभाजन के समय किशोरवस्था में ही आपका परिवार पश्चिम बंगाल में आकर बस गया। बाद में उन्होने विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन से स्नातक (प्रतिष्ठा) अंग्रेजी में किया और फिर कोलकाता विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर अंग्रेजी में किया। कोलकाता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर की डिग्री प्राप्त करने के बाद एक शिक्षक और पत्रकार के रूप में आपने अपना जीवन शुरू किया। तदुपरांत आपने कलकत्ता विश्वविद्यालय में अंग्रेजी व्याख्याता के रूप में नौकरी भी की। तदपश्चात 1984 में लेखन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आपने सेवानिवृत्त ले ली।

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