About to product
ठेले पर हिमालय
ठेले पर हिमालय खासा दिलचस्प शीर्षक है न! और यकीन कीजिए, इसे बिलकुल ढूँढ़ना नहीं पड़ा। बैठे-बिठाये मिल गया। अभी कल की बात है, एक पान की दूकान पर मैं अपने एक गुरुजन उपन्यासकार मित्र के साथ खड़ा था कि ठेले पर बर्फ की सिलें लादे हुए बर्फ वाला आया। ठण्डे, चिकने चमकते बर्फ से भाप उड़ रही थी । मेरे मित्र का जन्म-स्थान अल्मोड़ा है, वे क्षण-भर उस बर्फ को देखते रहे, उठती हुई भाप में खोये रहे और खोये-खोये-से ही बोले, ‘यही बर्फ तो हिमालय की शोभा है।’ और तत्काल शीर्षक मेरे मन में कौंध गया, ठेले पर हिमालय |Read More
About to author
Dharmveer Bharti
धर्मवीर भारती
जन्मः इलाहाबाद में 25 दिसम्बर, 1926 को। बचपन में पिता की मृत्यु हो जाने से किशोरावस्था से ही गहरा आर्थिक संघर्ष। 1945 में प्रयाग विश्वविद्यालय में हिन्दी में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर ‘चिन्तामणि घोष’ पदक जीता और 1946 में हिन्दी में प्रथम श्रेणी में एम.ए.। उसी बीच में आजीविका के लिए ‘अभ्युदय’ तथा ‘संगम’ में उप-सम्पादक रहे। डॉ. धीरेन्द्र वर्मा के निर्देशन में ‘सिद्ध साहित्य पर शोध कर 1954 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की और विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए। उन्हीं दिनों ‘परिमल’ संस्था में सक्रिय तथा कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी, समीक्षा अनेक विधाओं में महत्त्वपूर्ण लेखन। सन् 1960 में ‘धर्मयुग’ के प्रमुख सम्पादक बनकर बम्बई आये और 1987 तक सम्पादन कर पत्रकारिता में एक विशिष्ट सांस्कृतिक मानदण्ड स्थापित किया। अब तक लगभग एक दर्जन यशस्वी कृतियाँ प्रकाशित। इंग्लैंड, पश्चिम जर्मनी, इंडोनेशिया, थाईलैंड, मॉरिशस, चीन तीन बार तथा बांग्लादेश की यात्राएँ।
अलंकरण : 1972 में पद्मश्री तथा अनेकानेक पुरस्कारों (राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान, बिहार; भारत भारती सम्मान, उ.प्र.; महाराष्ट्र गौरव; तथा कौडिया न्यास पुरस्कार आदि) से सम्मानित। निधन : 4 सितम्बर 1997।
Reviews
There are no reviews yet.