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तरुणाई के सपने – वज्र-सा कठोर और फूलों-सा सुकुमार वह अक्षय व्यक्तित्व — नेताजी सुभाषचन्द्र बोस! और उनका अमर कृतित्व, ‘तरुणाई के सपने’! सन् 1921 से 1940 तक के पत्रों, निबन्धों और व्याख्यानों का राष्ट्रभाषा हिन्दी में सर्वप्रथम संग्रह। ‘तरुणाई के सपने’ अर्थात् वह मनोभूमि, वह कल्पना और रचना-कौशल जिससे उद्भूत हुए ‘चलो दिल्ली!’ ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।’ ‘हमें संशोधन नहीं चाहिए, बुनियादी परिवर्तन चाहिए।’ ‘जय हिन्द!’ नेताजी के सपनों का भारत। ‘तरुणाई के सपने’Read More
अर्थात् — ‘तरुणेर स्वप्न’ तथा ‘नूतनेर सन्धान’ शीर्षक से बांग्ला में प्रकाशित नेताजी की दोनों कृतियों का हिन्दी में एक समाहित संस्करण जो अब एक दस्तावेज़ हैं, एक धरोहर है, एक इतिहास है, एक सन्दर्भ-ग्रन्थ है—आज़ादी की लड़ाई का वृत्त-चित्र है नेताजी की परिकल्पना के आज़ाद भारत का। इस समय इस पुस्तक की महत्ता और उपयोगिता निःसन्देह कितनी बढ़ जाती है, जब हम नेताजी के विद्यमान होने-न-होने की द्विधा पर राष्ट्रीय प्रश्न के रूप में विचार कर रहे हों। कैसे हो सकता है वह व्यक्ति तिरोहित, जिसने हमें दिये…. ‘तरुणाई के सपने’! प्रस्तुत है पुस्तक का यह नया संस्करण, नयी साज-सज्जा के साथ।
About the author
Subhashchander Bosh
सुभाषचन्द्र बोस – महान स्वतन्त्रता सेनानी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओड़िशा के कुट्टक गाँव में हुआ। उनके पिता जानकीनाथ बोस वकील थे। उनकी माता का नाम प्रभावती था। वे भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे।
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द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्होंने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए जापान के सहयोग से ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ का गठन किया था। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस द्वारा दिया गया ‘जय हिन्द’ का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा है। सुभाषचन्द्र बोस के मन में देशप्रेम, स्वाभिमान और साहस की भावना बचपन से ही बड़ी प्रबल थी। वे अंग्रेज़ी शासन का विरोध करने के लिए अपने भारतीय सहपाठियों का भी मनोबल बढ़ाते थे। अपनी छोटी आयु में ही सुभाष ने यह जान लिया था कि जब तक सभी भारतवासी एकजुट होकर अंग्रेज़ों का विरोध नहीं करेंगे, तब तक हमारे देश को उनकी ग़ुलामी से मुक्ति नहीं मिल सकेगी। जहाँ सुभाष के मन में अंग्रेज़ों के प्रति तीव्र घृणा थी, वहीं अपने देशवासियों के प्रति उनके मन में बड़ा प्रेम था। ‘किसी राष्ट्र के लिए स्वाधीनता सर्वोपरि है’ इस महान मूलमन्त्र को शैशव और नवयुवाओं की नसों में प्रवाहित करने, तरुणों की सोई आत्मा को जगाकर देशव्यापी आन्दोलन देने और युवा वर्ग की शौर्य शक्ति उद्भासित कर राष्ट्र के युवकों के लिए आज़ादी को आत्मप्रतिष्ठा का प्रश्न बना देने वाले नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने स्वाधीनता महासंग्राम के महायज्ञ में प्रमुख पुरोहित की भूमिका निभायी।
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