Product details
- ASIN : B077XVYWM6
- Publisher : Vani Prakashan; 2nd edition (27 October 2023); Vani Prakashan – 4695/21-A, Daryaganj, Ansari Road, New Delhi 110002
- Language : Hindi
- Paperback : 324 pages
- ISBN-10 : 9352296958
- ISBN-13 : 978-9352296958
- Reading age : 18 years and up
- Item Weight : 400 g
- Dimensions : 22 x 2 x 14 cm
- Country of Origin : India
- Net Quantity : 400 Grams
- Importer : Vani Prakashan – New Delhi
- Packer : Vani Prakashan
स्त्रियों और दलितों का पक्ष लेने वाले लेखकों-सम्पादकों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसका एक कारण यह है कि इस क्षेत्र में नेतृत्व का स्थान लगभग खाली है। पर आदिवासियों को कोई नहीं पूछता क्यों वे राजधानियों में सहज सुलभ नहीं होते। उनकी सुध लेने के लिए उनके पास जाना पड़ेगा- -कष्ट उठाकर । इसलिए वे उदाहरण देने और इतिहास की बहसों में लाने के लिए ही ठीक है। इस दृष्टि से रमणिका गुप्ता की तारीफ होनी चाहिए कि ‘आदिवासी स्वर और नयी शताब्दी’ की थीम पर एक उम्दा कृति दी है।Read More
विशेषता यह है कि एक नीतिगत फैसले के तहत उन्होंने इस अंक में केवल वही रचनाएँ ली हैं जो आदिवासी लेखकों द्वारा ही लिखी गयी हैं। फलतः आदिवासी मानसिकता की विभिन्न मुद्राओं को समझने का अवसर मिलता है। यह देखकर खुशी नहीं होती कि दलित साहित्य की तरह नये आदिवासी साहित्य में आक्रोश ही मुख्य स्वर बना हुआ है। जहाँ भी अन्याय है, आक्रोश का न होना स्वास्थ्यहीनता का लक्षण है। लेकिन साहित्य के और भी आयाम होते हैं, यह क्यों भुला दिया जाए?
– राजकिशोर
स्वयं के सपनों के सृजन में आदिवासियों द्वारा सृजित साहित्य संस्कृति पर केन्द्रित यह पुस्तक उसी की तलाश करती है कि सबसे अधिक स्वप्नों का सृजन साहित्य ही करता है और स्वप्न सृजन के क्रम में साहित्य अपनी सार्थकता सिद्ध करता है, इस दृष्टि से इस अंक में खड़िया, कुडुख, नागपुरिया, भिलोरी, मराठी, मुंडारी, सन्थाली, बिरहोर, लम्बाड़ी के साथ कोंकणी, मलयाली, राजस्थानी और हल्बी में आदिवासियों द्वारा सृजित साहित्य को उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है।
आदिवासी जो अब तक लोककथात्मक चरित्रों, किंवदंतियों और मिथकीय परिकल्पनाओं के रूप में हमारी संवेदना को रँगते रहे हैं, अब वे पुरानी दास्ताँ हो चुकी है, पर समाज का एक हिस्सा आज भी आदिवासियों और उनकी समस्याओं को उसी रूप में ‘रोमैंटिसाइज’ करता है, इस बहाने वे उन्हें ढकेलते हुए अतीत में ही कैद कर देना चाहते हैं लेकिन यह वर्ग वह भी है जो उनके जीवन, समाज और संस्कृति सम्बन्धी समस्याओं और समाधानों के बारे में ही नहीं सोचता, बल्कि विकास की सम्भावनाओं की नैतिक तलाश करता हुआ, उनके भूगोल, इतिहास, संस्कृति, अर्थशास्त्र और नृ-विज्ञान से भी टकराता है। नयी शताब्दी में आदिवासी स्वर की स्वाभाविकता और सहजता को सृजनात्मक सन्दर्भों के साथ प्रस्तुत किया गया है। इन सृजनात्मक सन्दर्भों में विकास और विस्थापन का देश, आदिवासी संसाधनों और संस्कृति के साथ मनमाना व्यवहार, शोषण की निरन्तरता, अशिक्षा और गरीबी और उससे उपजे असन्तोष और प्रतिरोधी संघर्ष के सन्दर्भ विद्यमान हैं, इस असन्तोष और संघर्ष में वे जनवादी शक्तियाँ आदिवासी कार्यों के साथ हैं, जो उनके दुख-दर्द को अपना ही नहीं समझते बल्कि इस दुख-दर्द और सरकारी विकास की अवधारणा की सही समझ भी रखते हैं ।
-दुर्गा प्रसाद गुप्त
About the editor
Ramnika Gupta
रमणिका गुप्ता
जन्म : 22 अप्रैल, 1930, सुनाम (पंजाब)
बिहार/झारखण्ड की पूर्व विधायक एवं विधान परिषद् की पूर्व सदस्य । कई गैर-सरकारी एवं स्वयंसेवी संस्थाओं से सम्बद्ध तथा सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक कार्यक्रमों में सहभागिता । आदिवासी, दलित महिलाओं व वंचितों के लिए कार्यरत । कई देशों की यात्राएँ । विभिन्न सम्मानों एवं पुरस्कारों से सम्मानित ।Read More
वाणी प्रकाशन से प्रकाशित कृतियाँ : निज घरे परदेसी, साम्प्रदायिकता के बदलते चेहरे (स्त्री-विमर्श); आदिवासी स्वर : नयी शताब्दी (सम्पादन) ।
इसके अलावा छह काव्य-संग्रह, चार कहानी-संग्रह एवं तैंतीस विभिन्न भाषाओं के साहित्य की प्रतिनिधि रचनाओं के अतिरिक्त आदिवासी : शौर्य एवं विद्रोह (झारखण्ड), आदिवासी : सृजन मिथक एवं अन्य लोककथाएँ (झारखण्ड, महाराष्ट्र, गुजरात और अंडमान-निकोबार) का संकलन-सम्पादन ।
अनुवाद : शरणकुमार लिंबाले की पुस्तक दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र का मराठी से हिन्दी में अनुवाद । इनके उपन्यास मौसी का अनुवाद तेलुगु में पिन्नी नाम से और पंजाबी में मासी नाम से हो चुका है । ज़हीर गाजीपुरी द्वारा उर्दू में अनूदित इनका कविता-संकलन कैसे करोगे तकसीम तवारीख को प्रकाशित । इनकी कविताओं का पंजाबी अनुवाद बलवीर चन्द्र लांगोवाल ने किया जो बाग़ी बोल नाम से प्रकाशित हो चुका है। आदिवासी, दलित एवं स्त्री मुद्दों पर कुल 38 पुस्तकें सम्पादित ।
सन् 1985 से ‘युद्धरत आम आदमी’ (मासिक हिन्दी पत्रिका) की मृत्युपर्यन्त सम्पादक रहीं ।
सम्पर्क : डिफेंस कॉलोनी, नयी दिल्ली-110024
निधन : 26 मार्च, 2019
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